Daughter’s property rights : भारत में बेटियों को भी बेटों के समान संपत्ति में अधिकार देने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने इस अधिकार को लेकर नई चर्चा छेड़ दी है। इस फैसले के तहत अब कुछ बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा। आइए जानते हैं इस अहम फैसले की पूरी जानकारी।
बेटियों के संपत्ति अधिकार और नया मोड़
अब तक यह माना जाता था कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 के तहत बेटियों को भी बेटों के समान अधिकार प्राप्त हैं। यानी बेटी और बेटा, दोनों पिता की संपत्ति में बराबर के हकदार होते हैं। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने स्पष्ट किया कि कुछ परिस्थितियों में बेटियां पिता की संपत्ति पर अपना अधिकार खो सकती हैं। यह फैसला एक विशेष तलाक के मामले के संदर्भ में दिया गया है।
Read Also : Airtel ने पेश किया नया इंटरनेशनल रोमिंग प्लान, भारत के साथ 189 देशों में मिलेगें शानदार बेनिफिट्स
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया ऐसा फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले में यह टिप्पणी की, जहां एक बालिग बेटी, जिसकी उम्र लगभग 20 वर्ष थी, ने अपने पिता से कोई संबंध नहीं रखा था।
कोर्ट ने कहा:
- यदि कोई बालिग बेटी अपने पिता से नाता तोड़ लेती है, तो वह पिता की संपत्ति में अधिकार खो देती है।
- ऐसी बेटी, तलाक के बाद भी, पिता से शिक्षा या अन्य खर्चों के लिए कोई मांग नहीं कर सकती।
इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि संपत्ति अधिकार केवल जन्म पर आधारित नहीं हैं, बल्कि संबंधों और परिस्थितियों पर भी निर्भर करते हैं।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन के बाद बेटियों को संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार दिया गया था।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कहा कि:
- यदि बेटी अपने पिता से संबंध नहीं रखना चाहती और स्वतंत्र रूप से जीवन जी रही है, तो वह पिता की संपत्ति में अपना हक खो देती है।
- इस मामले में बेटी अपने भाई के साथ रह रही थी और पिता से कोई संपर्क नहीं रखती थी, जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि वह पिता से अपना संबंध तोड़ चुकी थी।
अंतरिम गुजारा भत्ता और खर्चे की स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि:
- बेटी को शिक्षा और अन्य खर्चों के लिए उसके पति से ₹8000 प्रति माह अंतरिम गुजारा भत्ता दिया जा रहा था।
- उसकी मां भी सहायता कर रही थी, इसलिए बेटी को पिता से किसी अतिरिक्त सहायता या संपत्ति के अधिकार की आवश्यकता नहीं थी।
महिला के माता-पिता के तलाक का प्रभाव
इस केस में यह भी तथ्य था कि:
- महिला के माता-पिता का पहले ही तलाक हो चुका था।
- मां द्वारा बेटी की सहायता की जा रही थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई सहायता मिलती है तो वह मां के अधिकार क्षेत्र में आएगी, न कि पिता की संपत्ति से।
यह भी स्पष्ट किया गया कि जब बेटी अपने पिता से संबंध तोड़ लेती है, तो उसके लिए संपत्ति में हिस्सा मांगने का कानूनी आधार कमजोर हो जाता है।
Read Also : अब पहली से 12वीं क्लास के सभी छात्रों को मिलेगी मुफ्त मिलेगी बस सेवा, जानिए कैसे उठाये लाभ
कैसे पहुंचा मामला सुप्रीम कोर्ट तक?
- सबसे पहले, जिला अदालत में महिला के पति ने तलाक की अर्जी दी थी।
- जिला अदालत ने पति के पक्ष में तलाक मंजूर कर दिया।
- इसके बाद महिला ने हाई कोर्ट में अपील की, जहां तलाक की अर्जी खारिज कर दी गई।
- हाई कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- सुप्रीम कोर्ट ने अब पति यानी याची के पक्ष में फैसला सुनाते हुए संपत्ति अधिकार से जुड़ी यह अहम टिप्पणी की।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला (Supreme Court decision) बताता है कि बेटियों के संपत्ति अधिकार भी परिस्थितियों पर निर्भर हो सकते हैं।
यदि कोई बेटी अपने पिता से रिश्ता पूरी तरह खत्म कर लेती है, तो वह पिता की संपत्ति में अपना अधिकार खो सकती है।
यह फैसला संपत्ति विवादों में नए कानूनी दृष्टिकोण को दर्शाता है और संपत्ति से जुड़े मामलों में रिश्तों की अहमियत को भी रेखांकित करता है।